भारत में मन्दिर संस्कृति पर राष्ट्रिय संगोष्ठी का समापन

Shivdev Arya

हरिद्वार। श्री भगवान दास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में भारत में मन्दिर संस्कृति विषय पर प्रवर्तमान राष्ट्रिय संगोष्ठी का आज समापन हुआ। संगोष्ठी में प्रातःकाल मुख्य वक्ता के रूप में विचार रखते हुए डा. श्वेता अवस्थी ने कहा कि मन्दिरों की संस्कृति अतिप्राचीन है। भारत में नागर, बेसर, द्रविड़ आदि शैलियों में मन्दिरों का निर्माण हुआ है। स्थापत्य कला के विकास में मन्दिरों का बहुत बड़ा योगदान है। डा.बबलू वेदालंकार ने कहा कि मन्दिरों के माध्यम से भारतीय संस्कृति में एकता का विकास हुआ है। राम मन्दिर के निर्माण में देश के प्रत्येक क्षेत्र के लोगों ने आर्थिक सहयोग देकर एकता का सन्देश दिया है। डा. शैलेश कुमार तिवारी ने कहा कि मन्दिर भारत की आर्थिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के कारण है। भारत के अनेक मन्दिरों में अनवरत निश्शुल्क भोजनालय चलते हैं, जहां हजारों लोग अन्न ग्रहण करते हैं। उस स्थान पर कोई भी व्यक्ति कभी भूखा नहीं रहता है। मन्दिरों के कारण ही भारत की प्राचीन परम्पराएं सुरक्षित रही है। वर्तमान में मन्दिरों मठों के कारण ही वेदादि शास्त्रों की परम्पराएं अभी तक सुरक्षित रहें हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने कहा कि मन्दिर शान्ति एवं आन्तरिक ऊर्जा के स्रोत है। शास्त्रों में मन्दिरों के वैज्ञानिक स्वरूपों का वर्णन किया गया है। आदि शंकराचार्य ने चारों मठों की स्थापना देश के चारों कोणों में की है, जिससे देश को एकत्रित करने में बहुत सहायता मिली है। वर्तमान में मन्दिरों की संस्कृति में ह्रास हुआ है जो चिन्ता का विषय है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग के आचार्य प्रो. भागीरथी नन्द ने कहा कि कोणार्क मन्दिर के चौबीस पहियों में विज्ञान का अद्भुत समावेश है। उन्होंने बताया कि जब तक मन्दिर संस्कृति चरमोत्कर्ष पर रही है, तब तक भारत में कभी भी समुद्री हमलें नहीं हुए हैं, क्योंकि मन्दिरों के ऊपरी भाग पर विशाल चुम्बकों का प्रयोग किया जाता था , जो समुद्री जहाजों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। औरंगजेब आदि के कारण मन्दिर संस्कृति की बहुत हानि हुई हैं, परन्तु फिर भी आज तक यह मन्दिर संस्कृति अनवरत रूप से अपनी उपयोगिता सिद्ध कर रही है। समापन सत्र में डा. मनोज कुमार ने कहा कि आज भी अंकोरवाट का मन्दिर कम्बोडिया में भारतीय संस्कृति का स्मरण करा रहा है। डा. वाजश्रवा आर्य ने कहा कि मन्दिरों के कारण ही आज तक संस्कृत भाषा का विकास हुआ है। मन्दिरों के प्राचीन स्मृति पत्रों के अवलोकन से पता चलता है कि इनका निर्माण भारतीय संस्कृति के विकास के लिए ही हुआ था। मुख्यातिथि प्रो. विष्णुपद महापात्र ने कहा कि मन्दिर संस्कृति एक दर्शन है। मन्दिरों के बिना भारतीय संस्कृति निष्प्राण है। विशिष्ट अतिथि राष्ट्रपति व साहित्य पुरस्कार से पुरस्कृत डा. प्रशस्यमित्र शास्त्री ने कहा कि लोभ मोह क्रोध आदि से बचने व त्याग, श्रद्धा आदि के विकास के लिए मन्दिरों का महत्वपूर्ण योगदान है। समापन अवसर पर प्रभारी प्राचार्य डॉ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहदेव ने महाविद्यालय परिवार की ओर से सभी विद्वानों का स्वागत एवं सम्मान किया। कार्यक्रम का संयोजन डा. रवीन्द्र कुमार व डा. आशिमा श्रवण ने किया। इस अवसर पर डा. निरंजन मिश्र, डा. दीपक कोठारी, डा. आलोक सेमवाल, डा. कुलदीप कुमार, डा. भूपेंद्र कुमार, डा. अतुल चमोला, डा. प्रमेश बिजल्वाण, श्री विवेक शुक्ला, श्रीमती स्वाति शर्मा आदि प्राध्यापकों सहित महाविद्यालय के छात्र उपस्थित रहें।

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