देहरादून। भारत विकास परिषद् देहरादून की समस्त शाखाओं द्वारा बंकिम चन्द्र चटर्जी के जन्म दिवस के अवसर पर श्री गुरु राम राय इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एंड हेल्थ साइंसेज पटेल नगर में सामूहिक वन्देमातरम् गायन कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमे प्रांत प्रचारक युद्धवीर एवं राज्यसभा सांसद नरेश बंसल के साथ ही वन, भाषा, निर्वाचन और तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने भाग लिया।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुये वक्ताओं ने कहा की भारत की आजादी एक बहुत लंबे स्वाधीनता आंदोलन की देन है। इसमें तत्कालीन राजनेताओं व राजा-महाराजाओं का ही नहीं बल्कि साहित्यकारों, कवियों, वकीलों और विद्यार्थियों का भी विशेष योगदान था।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे साहित्य मनीषियों ने वंदे मातरम जैसी अपनी महान और अमर रचनाओं से न केवल आजादी की लड़ाई में नई जान फूंकी बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्य को मजबूती देते हुए नए आयाम प्रदान किए। ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी के द्वारा 1874 में लिखा गया एक अमर गीत वंदे मातरम न केवल भारतीय स्वाधीनता संग्राम का मुख्य उद्घोष बना बल्कि आज देश का राष्ट्रगीत भी है।
अमर गीत वंदे मातरम को लिखकर महान साहित्य रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी सदैव के लिए अमर हो गए। वंदे मातरम सिर्फ एक गीत या नारा ही नहीं, बल्कि आजादी की एक संपूर्ण संघर्ष गाथा है, जो 1874 से लगातार आज भी करोड़ों युवा दिलों में धड़क रही है। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून, 1838 ईस्वी को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में हुआ था। प्रसिद्ध लेखक बंकिम चंद्र बंगला भाषा के शीर्षस्थ व ऐतिहासिक उपन्यासकार रहे हैं। बंकिम ने अपना पहला बांग्ला उपन्यास दुर्गेश नंदिनी 1865 में लिखा था, तब वे महज 27 साल के थे।
इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बंकिम चंद्र को बंगला साहित्य को जनमानस तक पहुंचाने वाला पहला साहित्यकार भी माना जाता है।इस अवसर पर नगर निगम देहरादून के मेयर सुनील उनियाल, कुलपति दून विश्वविद्यालय डॉ0 सुरेखा डंगवाल, भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुनील खेडा, भारत विकास परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष बृज प्रकाश गुप्ता भी उपस्थित रहे।
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