हरिद्वार। आज श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत भारती तथा महाविद्यालय के संयुक्त तत्त्वाधान में चल रहें संस्कृत सप्ताह का समापन किया गया। समापन कार्यक्रम में उपस्थित समस्त विद्वज्जनों ने संस्कृतभाषा की दशा और दिशा पर अपने विचार व्यक्त किये। महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य श्री बी.के. सिंहदेव ने बताया कि संस्कृत भाषा विश्व की प्राचीनतम एवं श्रेष्ठतम भाषा है। आज भी स्वल्प मात्रा में ही सही संस्कृत वाङ्गमय का प्रणयन हो रहा है, पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है, मञ्च पर नाटक अभिनीत होते हैं तथा धाराप्रवाह भाषण दिये जाते हैं। इतना ही नहीं काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारतीयों के सांस्कृतिक तथा धार्मिक-कृत्यों, पूजा-पद्धतियों एवं संस्कारों में संस्कृत भाषा का समान रूप से प्रयोग होता है। इस प्रकार संस्कृत भाषा उपमादि अलङ्कारों, माधुर्यादि गुणों से विभूषित एवं शृङ्गारादि रसों में परिलिप्त विश्व प्राङ्गण में शोभायमान है।
संस्कृत भारती के प्रान्त सङ्घठन मन्त्री श्री गौरव शास्त्री जी ने कहा कि इस संस्कृत सप्ताह का उद्देश्य संस्कृत भाषा को जनसामान्य के लिये सुलभ बनाना है। संस्कृत भाषा सार्वभौमिक है। विभिन्न पाश्चात्य विद्वानों ने संस्कृत भाषा का अध्ययन किया एवं इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि संस्कृत साहित्य संसार के सभ्य साहित्यों में अनुपम तथा अद्वितीय है इसकी प्राचीनता एवं व्यापकता, सांस्कृतिक मूल्य और सौन्दर्य दृष्टि सभी क्षेत्रों में यहाँ विश्व के किसी भी साहित्य से टक्कर ले सकता है। संस्कृत भाषा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी शास्त्रीय उच्चारण पद्धति है। स्वर शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान भारतीय मनीषियों ने ‘स्वरविज्ञान’ का गम्भीर अन्वेषण किया था।
इस अवसर पर डॉ. निरञ्जन मिश्र, डॉ. मञ्जु पटेल, डॉ. रवीन्द्र कुमार, डॉ. आशिमा श्रवण, डॉ. आलोक कुमार सेमवाल, डॉ. दीपक कुमार कोठरी, श्री विवेक शुक्ला, श्री मनोज कुमार गिरि, डॉ. प्रमेश कुमार बिजल्वाण तथा महाविद्यालय के अन्य कर्मचारी उपस्थित रहें।