इस अवसर पर प्रतिभागियों एवं विद्वानों को अमेरिका से सम्बोधित करते हुए पतंजलि वि.वि. के कुलाधिपति स्वामी रामदेव ने कहा कि हमारी आर्ष ज्ञान परम्परा ऋषियों द्वारा दी गई सबसे बड़ी विरासत है जिसकी रक्षा करना हम सभी का कर्त्तव्य होना चाहिए. उन्होंने शास्त्रीय ज्ञान के स्वाध्याय को सम्पूर्ण व्यक्तित्व का परिष्कार एवं मानव उत्कर्ष करने वाला बताया|
इस अवसर पर पतंजलि वि.वि. के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शास्त्र का अध्ययन-अध्यापन व स्मरण कर हमें अपनी परम्पराओं की रक्षा करनी चाहिए. जब हम शास्त्रों का श्रवण व स्वाध्याय करते हैं तो इससे हमारा कायाकल्प होकर जीवन दिव्य होता है तथा दोषों से मुक्त हो जाता है.
शास्त्रीय कण्ठपाठ प्रतियोगिता की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने बताया कि हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें भयमुक्त, रोगमुक्त रखने के लिए शास्त्रों की रचना की थी. उद्घाटन सत्र में गुरुकुल कांगड़ी वि.वि. के कुलपति डॉ. सोमदेव शतान्शु, Uttarakhandसंस्कृत वि.वि. के कुलपति प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री, नेपाल के उद्योगपति एवं वहाँ प्रथम गुरुकुल की स्थापना करने वाले सुरेश शर्मा, पतंजलि वि.वि. के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. मनोहर लाल आर्य, भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य एवं व्याकरण के आचार्य डॉ. भोला झा, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग के मर्मज्ञ विद्वान डॉ. विजय पाल प्रचेता एवं पतंजलि वि.वि. की कुलानुशासिका एवं मानविकी व प्राच्य विद्या अध्ययन की अध्यक्षा डॉ. साध्वी देवप्रिया आदि विद्वानों का भी उद्बोधन हुआ. बीएनवाईएस की छात्रा सु दान ने गीता एवं उपनिषद्, साध्वी देवसूर्या ने नवोपनिषद्, स्वामी प्रकाशदेव ने निघण्टु शास्त्र, स्वामी अर्जुनदेव ने गीता, अविकांत एवं सृष्टि ने योगदर्शन तथा ऋचा ने पंचदर्शन स्मरण कर प्रतियोगिता में अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन किया.