महरौनी(ललितपुर)- महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में वैदिक धर्म को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित व्याख्यान माला के क्रम में “जिन खोजा तिन पयाँ” विषय पर वैदिक प्रवक्ता आचार्य अंकित प्रभाकर प्रहरी चैनल परोपकारिणी सभा अजमेर ने कहा कि हम सभी अनंत काल से उस प्रायितम प्रभु की खोज में लगे हुए हैं,जो हमारा सच्चा सखा,परमहितैषी है। अब प्रश्न उठता हैं कि अगर वह हमारा प्रिय सखा हैं तो उसको खोजना कैसा,वह तो सदैव ही हमारे पास है,फिर भी हम उसे नही देख पाते,कारण ऋषियों ने बताया हमारी आंखें प्रकृति उन पादार्थो को देखती हैं जिनमें वह परमात्मा रम रहा हैं,पर हम प्रकृति की बाह्य चकाचौंध में उलझकर रह जाते हैं जबकि ऋग्वेद का ऋषि कहता हैं -“प्रजापते न त्वदेता नन्यो विश्वा:” — अर्थात हे ! प्रजा के स्वामी ईश्वर जो जीव प्रकृति आदि वस्तु आपसे भिन्न उन,इन,पृथ्वी आदि भूतों तथा सब रुप युक्त बस्तुओं का तिरस्कार नहीं कर सकता,अर्थात आप सर्वोपरि हैं। अतः आपके द्वारा रचें हुए पदार्थों के द्वारा हम अपकीं सत्ता को स्वीकार करें और आपका आश्रय लेवें जिससे हमारी वह कामना सिद्ध होवें और हम लोग धन ऐश्वर्यों के स्वामी होवें। आगे मुण्डकोपनिषद में कहा हम जिस प्रकृति में उसकी खोज करते हैं उससे उस परमतत्व का अभाष अवश्य होता हैं।पर विनाशवान पादार्थो से वह अविनाशी,मिलता नहीं हैं। वह तो हमारे ह्रदय रूपी मंदिर में विराजमान हैं । उस अंतरात्मा भगवान को पाना हैं तो ओम का स्मरण करों। वेद कहता है “ओम स्मर” अर्थात ओम को सिमर ।
ईश्वर देवी ने भजन “तुम तो बसे प्रभु कण कण में, प्रीत लगी प्रभु सिमरन में”
सुप्रसिद्ध भजनोपदेशिका कविता आर्या दिल्ली ने “हमने आंगन नहीं घुवारा, कैसे आयंगे भगवान”
व्यख्यान माला में विजय सिंह निरंजन एड एमएसडी डिग्री कालेज पाली,आराधना सिंह शिक्षिका, सुमन लता सेन शिक्षिका, चन्द्रकान्ता आर्या,दया आर्या,कपिल गुप्ता मुरादाबाद,रामदेव शुक्ल,सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन जुड़ रहे हैं ।
संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।