मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपनी आत्मा की उन्नति करे। आत्मा की उन्नति ज्ञान की प्राप्ति एवं तदवत् आचरण करने से होती है। शारीरिक उन्नति के पश्चात ज्ञान की प्राप्ति करना कर्तव्य है। सद्ज्ञान की प्राप्ति वेद व वैदिक शिक्षाओं को जानने वा पढ़ने से ही होती है। इसके साधन मुख्यतः गुरूकुलीय शिक्षा है जहां स्नातक बनकर ब्रह्मचारी वैदिक शास्त्रों को जानने व समझने की योग्यता प्राप्त कर लेता है। उसके बाद उसे शास्त्रों का अध्ययन कर उनकी शिक्षाओं का चिन्तन व मनन करना होता। वर्तमान समय में सभी लोग गुरुकुलीय शिक्षा में न तो निष्णात हैं और न ही हो सकते हैं। आधुनिक समय में मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से पढ़कर मुनष्य, अपवादों को छोड़कर, अधिक धनोपार्जन करता है। अतः सभी माता-पिता अपनी सन्तानों के भौतिक दुष्टि से सुखी जीवन के लिए उन्हें मैकाले की शिक्षा पद्धति से ही शिक्षित व दीक्षित करते हैं और उनकी शिक्षा-दीक्षा पर भारी भरकम धनराशि व्यय करते हैं। कर्ज लेना पड़े तो वह भी करते हैं। ऐसे भी उदाहरण हैं कि निर्धन लोग अपनी भूमि व घर तक को गिरवी रख देते हैं। ऐसी मानसिकता के लोगों में वैदिक शिक्षा, ज्ञान व आचरण कैसे उत्पन्न किये जाये। इसका एक उपाय यह है कि अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से शिक्षित व्यक्ति वेद व वैदिक साहित्य की हिन्दी व अंग्रेजी के भाष्य, अनुवाद व टीकाओं को पढ़कर उनका ज्ञान प्राप्त करें। देखा गया है कि सभी की स्वाध्याय में रूचि नहीं होती। बहुत से बन्धु स्वाध्याय करना चाहते हैं परन्तु अपने कार्यों में व्यस्तताओं के कारण वह ऐसा नहीं कर पाते। ऐसे लोगों के लिए अवकाश के समय वैदिक विद्वानों के आश्रमों वा गुरूकुलों में जाकर उनसे उपदेश प्राप्त करना व अपनी शंकाओं का समाधान करना ही ज्ञान की प्राप्ति का साधन होता है। सच्चे विद्वान जहां रहते हों व वह जहां उपलब्ध हों, उसी को वैदिक परम्परा में तीर्थ कहा जाता है। देहरादून में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी द्वारा स्थापित व संचालित ‘श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरूकुल, पौंधा-देहरादून’ ऐसे ही वैदिक तीर्थ की संकल्पना को साकार किये हुए है। यहां वर्ष भर लगभग 125 ब्रह्मचारियों का वैदिक गुरुकुलीय पद्धति से पठन पाठन होता है और प्रत्येक वर्ष जून मास के प्रथम रविवार व उससे दो दिन पूर्व शुक्र व शनिवार को वार्षिकोत्सव आयोजित किया जाता है जिसमें आर्यजगत के चोटी के वैदिक विद्वान, योग प्रशिक्षक, उपदेशक तथा संन्यासीगण पधारते हैं। इन विद्वानों के उपदेश सुनकर व उनसे शंका-समाधान कर कोई भी व्यक्ति अपनी ज्ञान वृद्धि सहित शंकाओं व भ्रान्तियों का निवारण कर सकता है। उत्सव के अवसर पर ही प्रति वर्ष यहां सत्यार्थप्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका अध्ययन शिविर भी आयोजित किया जाता है। डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई इस शिविर के प्रशिक्षणार्थियों को सत्यार्थप्रकाश की शिक्षाओं को समझाते व उनका महत्व बताते हैं। वर्ष 2018 में भी 29-31 मई, 2018 को शिविर आयोजित किया गया था। वर्ष 2019 में भी शिविर आयोजति किया गया था। आशा है इस वर्ष 2022 में भी ऐसा ही एक शिविर आयोजित किया जा सकता है। इसमें सम्मिलित होकर जिज्ञासु व धर्मप्रेमी बन्धु निःशुल्क लाभ उठा सकते हैं।
आर्ष गुरुकुल पौंधा–देहरादून प्राचीन गुरूकुलीय शिक्षा पद्धति पर चलने वाली एक आदर्श शिक्षण संस्था है। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने 22 वर्ष पूर्व इस गुरुकुल की स्थापना की थी। श्री श्रीकान्त वम्र्मा जी ने अपने ऋषि भक्त पिता स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती की भावनाओं के अनुरूप इस गुरुकुल के लिए भूमि देकर सहयोग किया था। इससे गुरुकुल की स्थापना व उसके संचालन का कार्य सम्भव हुआ। आरम्भ में यहां कुछ अस्थाई कुटियायें बनाकर व कम संख्या में ब्रह्मचारी रखकर गुरूकुल आरम्भ किया गया था। आचार्य भीमसेन शास्त्री व आचार्य पं. युधिष्ठिर उप्रेती जी यहां ब्रह्मचारियों को अध्ययन कराते थे। डा. रवीन्द्र एवं डा. अजीत इस गुरुकुल के प्रथम छात्रों में से हैं। गुरूकुल के प्राचार्य आचार्य धनंजय आर्य जी को बनाया गया था जो तब लगभग 20 वर्ष के युवा थे और आज आर्यसमाज के प्रतिष्ठित युवा विद्वान हैं। उन्हीं की देखरेख व मार्गदर्शन में यह गुरुकुल दिन प्रतिदिन उन्नति कर रहा है। आचार्य चन्द्रभूषण शास्त्री जी अधिष्ठाता के रूप में आचार्य धनंजय जी का सहयोग करते हैं। अनेक बच्चे इस गुरुकुल में पढ़कर स्नातक बन चुके हैं। कुछ ने आचार्य व एम.ए. भी किया है। अनेक विद्यार्थियों ने नैट परीक्षा उत्तीर्ण की है। अनेक छात्रों में शास्त्रीय विषयों में पी.एच-डी. भी की है। राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर की संस्कृत व गन-सूटिंग आदि प्रतियोगिताओं में भी इस गुरुकुल के छात्र चयनित हुए और उन्होंने प्रथम व द्वितीय पुरुस्कार प्राप्त कर गुरुकुल को गौरवान्वित किया। एशियन खेलों में जाकर भी इस गुरुकुल के एक छात्र में पदक प्राप्त किया है। गुरुकुल के अनेक स्नातक विद्यालयों में प्रवक्ता व अनेक सरकारी सेवाओं में चयनित हुए हैं। गुरुकुल के कुछ ब्रह्मचारी वर्तमान में भी वैदिक विषय लेकर शोध कार्य करते हुए पी.एच-डी. की उपाधि के लिए कार्यरत है। आर्यवीर दल के राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर के शिविर भी प्रतिवर्ष इस गुरूकुल में लगते हैं। स्थान-स्थान पर वेद पारायण यज्ञों में भी इस गुरूकुल के आचार्य एवं ब्रह्मचारी अपनी सेवायें देते हैं। वैदिक धर्म व संस्कृति की रक्षा व उसके प्रचार-प्रसार में यह गुरुकुल अपनी अग्रणीय भूमिका निभा रहा है। ऐसे गुरूकुल में जाना, वहां के आचार्यों व ब्रह्मचारियों के कार्यों को प्रोत्साहित करना, उन्हें सहयोग देना भी सभी वैदिक धर्म प्रेमी ऋषि भक्तों का कर्तव्य है। गुरुकुल के उत्सव में पधारने पर भी ऋषिभक्त अनेक प्रकार से लाभान्वित होते हैं जिसका उल्लेख हम आगामी पंक्तियों में कर रहे हैं।
गुरूकुल के तीन दिवसीय उत्सव में प्रातः शौच एवं स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद योग प्रशिक्षण के अन्तर्गत आसन, प्राणायाम एवं ध्यान आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। साधकों को इनसे होने वाले लाभ बताये जाते हैं जिससे शिविरार्थी जीवन भर योगाभ्यास करते रहें। इसके बाद उत्सव में पधारे सभी लोग प्रातराश लेते हैं। प्रातः 7.30 से वेदपारायण यज्ञ आरम्भ हो जाता है। यज्ञ के ब्रह्मा प्रायः डा. सोमदेव शास्त्री जी होते हैं। वह यज्ञ के मध्य में अपने उपदेशों से भी श्रोताओं को उपकृत करते हैं। लगभग 1.30 घंटे में यज्ञ को सम्पन्न करते हैं। उसके बाद भजन, प्रवचन व सम्मेलनों का क्रम आरम्भ होता है। हर सत्र में प्रायः कोई न कोई सम्मेलन होता है। गोरक्षा सम्मेलन, पुरोहित सम्मेलन, गुरूकुल सम्मेलन आदि अनेक सम्मेलन होते हैं और इस बीच पुस्तकों व गुरूकुल की मासिक पत्रिका ‘आर्ष–ज्योति’ के विशेषांक का विमोचन आदि कार्य भी सम्पन्न किये जाते हैं। समापन दिवस पर यज्ञ, प्रवचन व भजन आदि के बाद मुख्य अतिथि का सत्कार व उनका सम्बोधन होता है। यज्ञ में पधारने वाले विद्वानों में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, डा. रघुवीर वेदालंकार, पं. वेदप्रकाश श्रोत्रिय, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई, पं. धर्मपाल शास्त्री, पं. इन्द्रजित् देव, डा. अन्नपूर्णा, डा. सुखदा सोलंकी, डा. नवदीप आर्य आदि विद्वान वक्ताओं सहित भजनोपदेशकों में पं. सत्यपाल सरल, पं. रुवेल सिंह, पं. नरेशदत्त आर्य आदि अनेक जाने माने भजनोपदेशकों के भजन सुनने को मिलते हैं। पं. ओम्प्रकाश वर्मा अपने जीवनकाल में प्रत्येक वर्ष गुरुकुल के उत्सव में उपस्थित होते हैं। यज्ञ की सुगन्ध से गुरूकुल का सारा परिसर सुगन्धित रहता है जहां बैठकर मन को शान्ति व सुख का अनुभव होता है। गुरूकुल के ब्रह्मचारी अपने व्यायाम, जूडो-कराटे व अन्य अनेक प्रकार के आश्चर्यजनक प्रदर्शन करते हैं। इन प्रदर्शनों से गुरूकुल के विद्यार्थियों की शारीरिक क्षमताओं का अनुमान किया जा सकता है। ऐसी क्षमता अंग्रेजी स्कूल के विद्यार्थियों में नहीं होती। गुरुकुल के आयोजनों में सबसे मुख्य हमें वेदपारायण यज्ञ तथा शीर्ष विद्वानों का सान्निध्य व उनके प्रवचन लगते हैं और साथ ही ऋषि भक्तों की बड़ी संख्या में दर्शन कर भी मन को सुख-शान्ति व प्रसन्नता की अनुभूति होती है। यहां आकर आप अपनी सामथ्र्य के अनुसार धन का दान भी कर सकते हैं जिससे इस गुरूकुल के कार्यकलाप सुचारू रूप से चल सकें। वैदिक व्यवस्था के अनुसार अपनी सामथ्र्यानुसार दान करना प्रत्येक गृहस्थी मनुष्य का कर्तव्य है। गुरुकुल में भोजन आदि की व्यवस्थायें भी उत्तम की जाती है। हां, उपस्थिति अधिक होने पर निवास व शयन आदि में अवश्य कुछ तप करना पड़ सकता है। यहां आकर ऋषि-भक्तों को तीर्थ यात्रा का लाभ मिलता है। यह अवसर गंवाना नहीं चाहिये।
गुरूकुल, पौंधा–देहरादून नगर के आईएसबीटी बस अड्डे से लगभग 22 किमी. की दूरी पर है। बस अड्डे से लोकल बस से सहारनपुर चैक उतर कर दूसरी प्रेमनगर की बस से प्रेमनगर पहुंचना होता है। यहां से भी पौंधा गांव के लिए छोटी गाड़ियां चलती हैं। आचार्य धनंजय जी को उनके चलभाष 9411106104 पर सूचना देकर उन्हें वाहन उपलब्ध कराने व जानकारी देने को कहा जा सकता है। गुरूकुल के सामने मुख्य मार्ग पर उतर कर वहां से लगभग 1 किमी. दूरी पर गुरूकुल का भवन व परिसर है। इस दूरी को पैदल या आश्रम के वाहन से पूरा किया जा सकता है। रेलवे स्टेशन से भी मुख्य मार्ग पर आकर प्रेमनगर की बस ली जा सकती है और वहां से गुरूकुल पहुंचा जा सकता है। हमें लगता है कि आईएसबीटी बस अड़डे से ओला टैक्सी लेकर भी गुरूकूल पहुंचा जा सकता है। सार्वजनिक वाहनों से गुरुकुल आने जाने में ऋषि भक्तों को थोड़ा-बहुत तप तो करना ही होता है। अतः आप अपनी स्थिति के अनुसार गुरूकुल में आने का निर्णय करें। गुरूकुल पहुंच कर आपको सुख की अनुभूति होगी और यहां के प्रवास का अनुभव अविस्मरणीय रहेगा, ऐसा हम अनुभव करते हैं।
प्रत्येक वर्ष गुरूकुल उत्सव के समापन दिवस पर बाहर के अतिथियों सहित स्थानीय आगन्तुक ऋषिभक्त बड़ी संख्या में पधारते हैं। सभी गुरूकुल में आयोजित कार्यक्रमों से सन्तुष्ट होते हैं। इस अवसर पर यहां पुस्तक, यज्ञ पात्रों व अन्य अनेक प्रकार के स्टाल भी लगते हैं। दिल्ली आदि से भी यात्रियों की कई बसे आती हैं। आप भी इस उत्सव में शामिल होकर लाभ उठा सकते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य, पताः 196 चुक्खूवाला-2, देहरादून-248001