महरोनी(ललितपुर) महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्या समाज महरोनी के तत्वाधान में वैदिक धर्म के सही मर्म को युवा पीढ़ी से परिचित कराने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित व्याखान माला में संस्कृति और सभ्यता विषय पर वैदिक विद्वान आचार्य शिवदत्त पांडेय गुरुकुल सुल्तानपुर ने कहा कि यजुर्वेद 7/14में कहा हैं सा प्रथमा संस्कृति विश्वरा अर्थात वह परमात्मा सच्चे मित्र के समान सबका हित साधने हारा हैं, उसी ने हमारे संसार के आते ही अपनी सर्वोत्कृष्ठ संस्कृति लोक और परलोक सुधारने के लिए हमे दी। वह सबसे पहली ओर उत्तम स्मपूर्ण संसार के द्वारा स्वीकार करने योग्य हैं,विद्या -सुशिक्षा जनित नीति व्यवहार पद्धति है,जिसने व्यक्ति का केवल अपना स्वास्थ सिद्ध न होकर मानव मात्रा प्राणी मात्र का हित हो,उन विचार परंपराओं का नाम ही संस्कृति हैं। अर्थात संस्कृति ईश्वर प्रदत्त हैं जबकि सभ्यता मानव प्रेरित हैं। संस्कृति बदलती नही हैं सभ्यता बदलती रहती हैं। संस्कृति व्यापक तत्व हैं,जबकि सभ्यता संकुचित सीमित होती हैं।जैसे प्राचीन सभ्यता,पश्चिमी सभ्यता यह सब समय समय पर बनती बिगड़ती रहती । वैदिक संस्कृति संसार के सभी प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखने को कहती हैं योग के आठ अंगो के पहले यम अर्थात अहिंसा,सत्य, अस्तेय,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तथा शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय और ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव संस्कृति कही गई।संस्कृति शब्द के उच्च गुण व्यक्ति में स्वत उत्पन्न नही होते,बल्कि सुशिक्षित शिक्षित अनुभवी माता,पिता,गुरु और समाज के वयोवृद्ध व्यक्तियों के द्वारा मिलने वाली सुशिक्ष के द्वारा उत्पन्न होते हैं।आओ हम वैदिक संस्कृति द्वारा समस्त प्राणियों की मंगल की कामना करें।
संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवम आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।