विश्वशांति के महानायक महात्मा बुद्ध – आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा
महात्मा बुद्ध भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के महानायक- डॉ राम चन्द्र कुरुक्षेत्र
महर्षि दयानन्द के उपकारों के ऋणी है हम सभी- ज्ञानेंद्र आवाना आईपीएस
महरौनी(ललितपुर)– महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्यसमाज महरौनी के तत्वाधान में विश्वशांति, विश्वप्रेम, विश्वसद्भाव एवं विश्वकल्याण की महान कामना करने वाले महात्मा बुद्ध का पावन जन्मोत्सव बुद्धपूर्णिमा के अवसर पर व्याख्यान माला में वैदिक प्रवक्ता आचार्य चन्द्र शेखर शर्मा ने कहा कि इस विश्ववंदनीय दिव्यात्मा का जन्म 563 ई.पू. में शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नेपाल में हुआ था। पूज्य पिता शुद्धोधन एवं पूज्या माता मायादेवी के पावन गृह में एक दिव्यात्मा का आगमन हुआ।पुत्र के जन्म के सात दिन बाद माँ को स्वर्गारोहण हो गया।सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने पालन-पोषण किया। शाक्य कन्या यशोधरा के साथ 16 वर्ष की आयु में विवाह हुआ। पुत्र का जन्म होने पर नाम राहुल रखा।
नगर भ्रमण के समय राजकुमार के रूप में अपने सारथी के साथ चार दृश्यों (1- वृद्ध व्यक्ति, 2- बीमार व्यक्ति, 3- एक अंतिम शवयात्रा, 4- एक संन्यासी) को देखकर अंत में वैराग्यपथ के सच्चे पथिक बन गये।
35 वर्ष की अवस्था में 6 वर्ष अनवरत साधना करते हुए वैशाख पूर्णिमा के दिन निरंजना नदी के पास पीपल वृक्ष के नीचे सद् ज्ञान प्राप्ति हुई। अब सिद्धार्थ नाम सार्थक हो गया। सिद्ध अर्थात् सफल हो गये हैं प्रयोजन जिसके,वही पूर्णकाम सिद्धार्थ अब बुद्ध नाम से सिद्ध और प्रसिद्ध हो गये।
उनका प्रथम उपदेश सारनाथ में बौद्धधर्मानुसार धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। उनके उपदेश कौशांबी, कौशल, वैशाली तथा सर्वाधिक श्रीवस्ती में पालि भाषा में हुए।
बुद्ध ने चार आर्यसत्यों का उपदेश दिया। (1- दुःख, 2- दुःख समुदाय, 3- दुःखनिरोध, 4- दुःखनिरोधगामिनी प्रतिप्रदा) और दुःखों से निवृत्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग का उपदेश किया। 1- सम्यक् दृष्टि, 2- सम्यक् संकल्प, 3- सम्यक् वाणी, 4- सम्यक् कर्मांत, 5- सम्यक् आजीव, 6- सम्यक् व्यायाम, 7- सम्यक् स्मृति, 8- सम्यक् समाधि।
अपने जीवननिर्माणकारी एवं मंगलकारी उपदेशों के द्वारा राजा से साधारण जनों तक वैराग्यपथ का अनुसरण कराने वाली दिव्यात्मा धराधाम से 80 वर्ष की आयु में महापरिनिर्वाण को प्राप्त हो गई।
इसके साथ ही आचार्य श्री ने उपासना करने के सात स्थानों का अतिरोचक वर्णन श्वेताश्वतर उपनिषद् के आधार पर किया।
आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा ने गीता षष्ठ अध्याय के आधार से आठ साधना के स्थानों तथा स्थितियों का विशद चित्रण किया।
योगसिद्धि के आरंभिक बारह लक्षणों और दस वरादानों को सुनकर श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गये। आचार्य जी की ओजस्वी वाणी और सहज,सरस एवं सुुबोध पदावली श्रोता के मन को छू जाती है।
विशिष्ठ अतिथि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आईआईएचएस के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ रामचंद्र ने कहा कि महात्मा बुद्ध भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के महानायक हैं। उन्होंने विरासत में प्राप्त अपार धन संपदा एवं पारिवारिक मोह को त्यागकर विश्व कल्याण का सर्वोच्च उदाहरण स्थापित किया। उनका जन्मदिन, बोध दिवस एवं परिनिर्वाण दिवस वैशाख पूर्णिमा को ही आता है यह एक अपूर्व सहयोग है। वे विचार एवं संस्कार के प्रतिनिधि आचार्य हैं। ‘अप्पदीपो भव ‘के महान संदेश के द्वारा उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को कर्मशील बनाने का उपदेश दिया। यह प्राचीन वैदिक परंपरा का ही अभिनव रूप था। महात्मा बुद्ध अपने समय में भारतीय जीवन पद्धति में आई हुई विकृतियों के निराकरण के लिए सर्वात्मना योद्धा के रूप में समर्पित हो गए थे। उनके पंचशील एवं एकादश शील का संदेश योगदर्शन, मनुस्मृति एवं भगवत गीता में प्राप्त संदेश का ही प्रतिरूप है।
अध्यक्षता करते हुए आईपीएस अधिकारी महात्मा ज्ञानेंद्र सिंह आवाना ने कहा कि महर्षि दयानन्द के हम सब ऋणी है जो उन्होंने हम सभी को सत्य एवं वेदमार्ग का अनुगामी बनाया।
व्यख्यान माला में रामप्रताप सिंह बैस,अवधेश प्रताप सिंह बैस,विजय सिंह निरंजन एडवोकेट,प्रोफेसर डॉ अरिमर्दन सिंह राजपूत, ईश्वर देवी,कमला हंस,चन्द्रकान्ता आर्या,प्रो.डॉ वेदप्रकाश बरेली,सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन जुड़ रहें है।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।