महरौनी (ललितपुर) 14 मई 2022 : महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा वैदिक धर्म के सही मर्म से युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से व्याख्यान माला के क्रम में “कर्म दर्शन” विषय पर वैदिक विद्वान आचार्य नरेंद्र मैत्रेय ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य तीन कर्मो से बंधा हैं तीन कर्म संचित,प्रारब्ध और क्रियमाण इन तीन प्रकार के कर्मो के परिपक्व होने से जो इनके फल रूप भोग ,सुख-दुःख,जन्म शरीर आदि की प्राप्ति मनुष्य को होती हैं।उनमें कुछ कर्म जैसे संचित कर्म वे संस्कार और वासनाएं हैं जो अनादि काल से कर्म करते हुए उतपन्न हुई जिनका फल अभी तक नही भोगा गया वे आत्मा में संस्कार रूप में बने रहते हैं। दूसरे प्रारब्ध जो अनेक एकत्रित संस्कारों में से तुरंत फल देने बाले कर्म होते हैं,जिनसे आत्मा किसी विशेष योनि द्वारा शरीर धारण कर्ता हैं जो परमात्मा के द्वारा दिया गया होता हैं,वह प्रारब्ध कहा जाता है। तीसरा क्रियमाण कर्म वह हैं जो शरीर धारण करने पर उस जीवन में पिछले कर्मो को भोगने के लिए किए जाते हैं।जिनसे नए संस्कार उतपन्न होकर आत्मा में एकत्रित होते हैं।अथवा जिन कर्मो का फल चालू जीवन भोग लिया गया हैं जिससे आगे भोगे जाने के लिए संस्कार नही बनते।
इन समस्त कर्म-बंधनो से बचने के लिए योग दर्शन में बताए गए यम,नियम,आदि आठ अंगों का अभ्यास करने से आत्मा कर्म बंधन में नही बंधता। यही तो भगवान कृष्ण कहते है। हे! अर्जुन तेरा कर्म करने में अधिकार हैं उसके फल में नही।आत्मा शरीर धारण करेगा तो कर्म स्वाभाविक रूप से करना ही पड़ेगा।
संगीता आर्या ने भजन ” जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू हैं तेरे नजारे नजर आ रहें हैं”
पुष्पा आर्या ने भजन “प्यारे ऋषि ने खून से सींचा है जो मिशन,मेरे किसी कर्म से कुमलाये न चमन”
प्रवीण गुप्ता भिलाई ने भजन “ऋषि की कहानी सितारों से पूंछो,फिजाओं से पूंछों, बहारों से पूंछों”
व्याख्यान माला में विजय सिंह निरंजन एडवोकेट,रामावतार लोधी प्रबन्धक दरौनी,डॉ वेदप्रकाश शर्मा बरेली,प्रेम सचदेवा,सुभाष चंद्र आर्य,चंद्रकांत आर्या,अनिल नरूला,सुमन लता सेन शिक्षिका,विमलेश सिंह शिक्षक,वी के सोनी,सत्यपाल सिंह,आदि उपस्तिथि रहें।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।