दीक्षारम्भ कार्यक्रम में डाॅ.मञ्जू पटेल का विशिष्ट व्याख्यान

Shivdev Arya

आज दिनाङ्क 10/07/2024 को श्रीभगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार में; दीक्षारम्भ- कार्यक्रम के अन्तर्गत, हिन्दी साहित्य का विशिष्ट परिचय विषयक व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के संयोजक व्याकरण विभाग के प्राध्यापक डाॅ.दीपक कुमार कोठारी ने बताया कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय
नई दिल्ली के निर्देशानुसार; श्रीभगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार में, दिनाङ्क-01/07/24 से दिनाङ्क 15/07/24 तक दीक्षारम्भ कार्यक्रम चल रहा है। जिसका आज दशम दिवस है। आज कार्यक्रम के दशम दिवस पर छात्रों को हिन्दी साहित्य विषयक विशिष्ट ज्ञान प्रदान करने हेतु, महाविद्यालय की ही आधुनिक विषय विभाग की सहायकाचार्य डाॅ.मञ्जू पटेल के विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया।
छात्रों को अपना विशिष्ट व्याख्यान प्रदान करते हुए; डाॅ.मञ्जू पटेल ने बताया कि हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ स्वयम्भू सरहपा की अपभ्रंश रचनाओं से होकर, क्रमशः हिन्दी में हुआ। तदनुरूप नाथ एवं सिद्ध साहित्य के साथ-साथ, रास-रासो चारण साहित्य की परम्परा हिन्दी के आदिकाल में रही। तदुपरांत हिन्दी को भक्तिकालीन स्वर्ण युग प्राप्त हुआ,जिसमें लोकनायक तुलसी,वात्सल्य प्रणेता सूरदास,जन-जन के कबीर, प्रेम सरिता प्रवाहिता मीरा प्रमुख थे। तत्पश्चात् रसिकों का रीतिकाल, संस्कृत की लक्षण प्रधानता लिये आया।आचार्य भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने गद्य का प्रारम्भ कर, खड़ी बोली हिन्दी के विकास को नयी दिशा प्रदान की एवं आधुनिक नव जागरण युग का प्रारम्भ हुआ। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने परिमार्जित; परिष्कृत हिन्दी की धारा में, मैथिलीशरण गुप्त के काव्य को प्रवाहमान किया। तदुपरान्त बहुविध प्रतिभावान् साहित्यकारों ने पृथक्- पृथक् विधाओं को नवगति प्रदान करते हुए, उन्नीस सौ सोलह से उन्नीस सौ छत्तीस तक, आधुनिक हिन्दी साहित्य को एक और स्वर्ण युग प्रदान किया। इसी शृङ्खला में काव्य- रहस्यवाद,छायावाद, उपन्यास- प्रेमचन्द युग, नाटक- प्रसादयुग,आलोचना-समालोचना, निबन्ध- शुक्लयुग आदि का आविर्भाव हुआ। पन्त का युगान्त, छायावाद के पराभव एवं प्रगतिवाद के उत्थान का सेतु बना। जहाॅ दिनकर एवं माखनलाल चतुर्वेदी ने राष्ट्रवाद का उद्घोष कर ; प्रगतिवाद को प्राण दिये वहीं निराला की कुकुरमुत्ता ने इसी समय मार्क्सवाद के चिन्तन पर बल दिया। तथापि कविता में प्रयोगवाद जैसे- नई कविता, अकविता, विकास पाती रही, उपन्यासों में मनोवैज्ञानिक अस्तित्ववादी ऐतिहासिक उपन्यासों ने भी स्थान पाया।
इस अवसर पर व्याकरण विभागाध्यक्ष डाॅ.रवीन्द्र कुमार आर्य,अंग्रेजी विषय की सहायकाचार्य डाॅ.आशिमा श्रवण,वेदान्त विभाग के प्राध्यापक डाॅ.आलोक सेमवाल व श्री आदित्य सुतारा,योग विषय के प्राध्यापक श्री मनोज गिरि एवं श्री अतुल मैखुरी,संस्कृत शिक्षक डाॅ.प्रमेश बिजल्वाण,साहित्य विभाग के प्राध्यापक डाॅ.अंकुर आर्य ,व्याकरण विभाग के प्राध्यापक श्री शिवदेव आर्य,साहित्य विभाग के प्राध्यापक श्री ज्ञानसिन्धु आदि सहित नव प्रविष्ट छात्र समुपस्थित रहे। कार्यक्रम के प्रारम्भ में महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डाॅ.व्रजेन्द्र कुमार सिंहदेव के द्वारा भी छात्रों को अपना आशीर्वाद प्रदान किया गया।

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