भारत की महिमा का वर्णन करते हुए ऋषि दयानंद ने लिखा है, कि आर्यावर्त देश ही ऐसा है कि जिसके सदृश भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है, इसलिए इस भूमि का नाम “सुवर्ण भूमि” है क्योंकि यह सुवर्ण आदि रत्नों को उत्पन्न करती है!—– पारस मणि पत्थर सुना जाता है, यह बात तो झूंठी है किंतु आर्यवर्त देश ही सच्चा पारस मणि है, कि जिसको लोहे रूपी विदेशी छूने के साथ ही सुवर्ण अर्थात् धनाढ्य हो जाते हैं ,यह देश धनाढ्य एवं वैभव संपन्न था, इसलिए अनेक विदेशी कंपनियां भारत में व्यापार करने आई थी!पुर्तगाल से 1498 में डच कंपनी आई, जिसने व्यापार करते हुए गोवा- दमनद्वीप पर राज्य सत्ता प्राप्त कर ली! सन् 1961 में इस से गोवा मुक्त कराया! फ्रांस से फ्रेंच कंपनी व्यापार करने आई, इस ने भी व्यापार करते हुए पांडिचेरी पर राज्य सत्ता प्राप्त कर ली !
4 अगस्त सन् 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई, इसने सूरत में अपना डेरा डाला, आवास के लिए कॉलोनी बनाई, अपने मकानों की सुरक्षा हेतु अपनी पुलिस रखने की अनुमति मांगी, धार्मिक पूजा पाठ के लिए पादरियों को रखने की अनुमति तत्कालीन भारतीय शासकों से प्राप्त कर ली! इस प्रकार ईस्ट इंडिया कंपनी ने- मर्चेंट (व्यापारी )मिलेट्री (पुलिस) मिश्नरी( ईसाई पादरी ) के रूप में अपनी शक्ति विकसित की और भारत में अपनी जड़े जमाई! ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार में छोटे 2 राजा बाधा डालते थे ,उनसे संघर्ष करने में कंपनी को सफलता मिली जिससे उसे राज्य सत्ता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिली! सन् 1755 में प्लासी के युद्ध में बंगाल के सिराजुद्दौला को इंडिया कंपनी ने हराया, बस इसी के पश्चात् इसे राज्य सत्ता का खून लग गया!उसने अपनी राज्य शक्ति को बढ़ाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया् ! राज्य शासन में कार्य करने के लिए अंग्रेजी पठित कर्मचारियों की आवश्यकता हुई! इंग्लैंड से भारत लाने पर इन कर्मचारियों पर अधिक व्यय कंपनी को करना पड़ता,अत: भारतीयों को अंग्रेजी की शिक्षा देने की योजना बनाने के लिए सन् 1835 में मैकाले को बुलाया तथा 1839 में स्कूल कॉलेज में पढ़ाई जाने वाली शिक्षा पद्धति का सूत्रपात किया!
संस्कृत के विद्वान् अंग्रेजी शासन का विरोध न करें इसलिए सन् 1845 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में “वेदानुसंधान विभाग “खोलकर प्रोफेसर मैक्समूलर की नियुक्ति की ! उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए संस्कृज्ञ विद्वानों को सरकारी खर्चे से उन्हें इंग्लैंड भेजा जाता था,जिससे वे अंग्रेज सरकार के प्रशंसक बने रहते!
इस प्रकार से इंडिया कंपनी ने मर्चेंट- मिलेट्री- मिश्नरी- मैकाले और मैक्स मूलर ने भारत को पराधीन बनाए रखने के लिए सुदृढ़ योजना बनाई थी!
सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन को ब्रिटिश सरकार ने शासन को अपने हाथों में ले लिया!
भारतीय सैनिकों की संख्या बहुत कम 260000 के स्थान पर 120000 कर दी गई ,भारतीय जन सरकार का साथ दें, इसके लिए उन्हें सुविधाओं का आश्वासन दिया गया! सब ब्रिटिश सरकार की प्रशंसा करें और अंग्रेज शासन भारत के लिए अच्छा है, यह सोच रहे थे!
ऐसी स्थिति में युग द्रष्टा दयानंद ने संघर्ष का बिगुल बजाते हुए कहा कि स्वदेशी (स्वराज्य) सर्वोपरि होता है जिसे आगे चलकर तिलक ने कहा था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है|
जब अंग्रेजी शासन की प्रशंसा में चाटुकार लोग लगे हुए थे तब ऋषि ने भारतीय स्वाभिमान की भावना भरते हुए लिखा- कि देखो-( अंग्रेज) अपने देश के बने हुए जूते को कार्यालय (
ऑफिस) और कचहरी में जाने देते हैं, इस देशी (भारतीय) जूते को नहीं! इतने में ही समझ लो, कि वे (अंग्रेज) अपने देश— का कितना मान प्रतिष्ठा करते हैं,उतना अन्य देशस्थ मनुष्यों का नहीं करते!
आगे ऋषि देखते हैं कि हम और आप को उचित है कि जिस देश के पदार्थों से अपना शरीर बना है अब भी पालन होता है, आगे भी होगा! उसकी उन्नति तन-मन-धन से सब जने मिलकर प्रीति से करें!इससे ऊंची क्या राष्ट्रीय भावना हो सकती है? जिस समय अंग्रेजी पठित व्यक्ति भारतीयों में हीन भावना भर रहे थे कि ऋषि मुनि ज्ञान विहीन थे हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाया जाता था, कृष्ण तेरी गीता जलानी होगी “लोहफतुल हिंद” आदि पुस्तकें लिखी जा रही थी, महाराष्ट्रियन ब्राह्मण पंडित नीलकंठ शास्त्री जैसा विद्वान् ईसाई बन गयाऔर उसने बाइबल का संस्कृत में अनुवाद किया, आर्य समाज व दयानंद न होता तो लाला राधा कृष्ण अग्रवाल (लाला लाजपत राय का पिता) मुसलमान हो गया होता! तबलिक (हिंदुओं को मुसलमान बनाने) के समर्थक कांग्रेसी नेता मोहम्मद अली और शौकत अली को टक्कर देने के लिए स्वामी श्रद्धानंद (शुद्धि आंदोलन के माध्यम से देने वाले )न होते, तो पंजाब में हिंदू न बचते,फिर किस हिंदू समाज का पंजाब में संगठन करते ? दयानंद और आर्य समाज का अपमान मत करो और ऋषि दयानंद और आर्य समाज के उपकारों को स्वीकार करो !
– अध्यक्ष, वैदिक मिशन मुम्बई