दिनांक 22-8-2022 सोमवार को श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौंधा, देहरादून में नवप्रविष्ट ब्रह्मचारियों का उपनयन एवं वेदारम्भ संस्कार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। जिसमें सत्र 2020-21 तथा 2021-22 में प्रविष्ट हुए 47 ब्रह्मचारियों का वेदारम्भ एवं उपनयन संस्कार आचार्य यज्ञवीर जी के आचार्यत्व में किया गया। संस्कार के पश्चात् ब्रह्मचारियों ने आगन्तुक महानुभावों से भिक्षायाचना कर गुरु जी को समर्पित की। इस अवसर पर आर्यजगत के सुप्रसिद्ध संन्यासी स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ब्रह्मचारियों का सौभाग्य है कि उन्हें इस पवित्र गुरुकुल में पढ़ने का अवसर मिल रहा है। आर्ष विद्या जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने का साधन है। यह विद्या हमारे इन गुरुकुलों में मिलती है। ब्रह्मचारियों को गुरुकुल में अध्ययन करते हुए इस विद्या को पढ़कर इससे लाभ उठाना है और विद्वान बनना है। इस अवसर पर ब्रह्मचारियों के पिता के रूप में व्रतों का पाठ पण्डित विद्यापति शास्त्री ने कराया। श्री कंवरपाल शास्त्री जी ने भी ब्रह्मचारियों को आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम में तपोवन आश्रम देहरादून के सचिव श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने ब्रह्मचारियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि अत्यन्त श्रम के साथ विद्या का अध्ययन कर आगे बढ़ना है। अन्त में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने बताया कि यज्ञ से पूर्व यजमान व ब्रह्मचारी का यज्ञोपवीत संस्कार कर उन्हें यज्ञोपवतीत दिया जाना चाहिये। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद ही किसी मनुष्य को यज्ञ में आहुति देने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत विद्या का प्रतीक है तथा आयु को बढ़ाने वाला है। अन्त में स्वामी जी ने उपस्थित समस्त महानुभावों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यक्रम का संचालन गुरुकुल के सुयोग्य स्नातक डॉ. शिव कुमार जी ने अत्यन्त कुशलता के साथ किया। इस कार्यक्रम की विस्तृत सूचना आर्य जगत के प्रसिद्ध लेखक श्री मनमोहन आर्य जी ने तैयार की।