डॉ. बी. के.एस. संजय को गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया

Shivdev Arya

देहरादून,। ऑर्थाेपीडिक और स्पाइन सर्जन डॉ. बी. के.एस. संजय को गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा जारी एक पत्र के अनुसार प्रतिष्ठित 102 वर्षीय हरिद्वार स्थित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया है। 1902 में आर्य सामाजिकी स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित होने के बाद से, यह विश्वविद्यालय वैदिक विज्ञान के अलावा इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, अनुप्रयुक्त विज्ञान, मानविकी, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार करता है।

विश्वविद्यालय में कुल 25 शैक्षणिक विभाग हैं। इस विश्वविद्यालय के उल्लेखनीय पूर्व छात्रों में फिल्म निर्माता चेतन आनंद, योग गुरु स्वामी रामदेव, अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राजनेता सांसद विनायक राव कोराटकर और कई अन्य शामिल हैं। डॉ. संजय देहरादून के एक विश्वविख्यात ऑर्थाेपीडिक सर्जन हैं, जो 4 दशकों से देहरादून में अपनी चिकित्सीय एवं सामाजिक सेवाऐं दे रहे हैं।

सर्जरी में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में और समाज सेवा के लिए इंडिया एवं इन्टरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है। डॉ. संजय को 9 नवंबर 2021 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा देश के चौथे सर्वाेच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. संजय को पद्मश्री मिलने पर मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल के अतिरिक्त कई दर्जनों सरकारी, गैर सरकारी, सामाजिक एवं व्यावसायिक संस्थाऐं सम्मानित कर चुकी हैं।

31 अगस्त 1956 को जन्मे डॉ. संजय ने अपनी बेसिक ऑर्थाेपीडिक शिक्षा और प्रशिक्षण भारत और उच्च ऑर्थाेपीडिक प्रशिक्षण तथा फैलोशिप विदेश से प्राप्त की। उन्होंने जी.एस.वी.एम. मेडिकल कॉलेज, कानपुर से एम.बी.बी.एस.(1980), पी.जी.आई. चंडीगढ़ से एम.एस. ऑर्थाेपीडिक (1986) एवं सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सफादरजंग  हॉस्पिटल, नई दिल्ली से सीनियर रेजिडेंसी (1983.1986) की। मेरिट के आधार पर उन्होंने विभिन्न फैलोशिप 1986 में स्वीडन , 1998 में स्विजरलैंड, 1990 में जापान, 1991 में अमेरिका, 1999 में ऑस्ट्रेलिया और 2011 में रूस से प्राप्त की।

पूर्व में वह पी.जी.आई. चंडीगढ़ में एसोसिएट प्रोफेसर और हिमालयन इंस्टीट्यूट जॉलीग्रांट में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के तौर पर कार्य कर चुके हैं। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में 100 से ज्यादा पेपर प्रस्तुत किए हैं और जर्नल ऑफ बोन एण्ड जॉइंट सर्जरी (ब्रिटिश और अमेरिकी वॉल्यूम), जर्नल ऑफ हैंड सर्जरी (ब्रिटिश वॉल्यूम), इंटरनेशनल ऑर्थाेपीडिक, इंडियन जर्नल ऑफ कैंसर इत्यादि उच्चस्तरीय इन्डेक्सड अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनके शैक्षिक शोध लेख प्रकाशित हुए हैं।

डॉ. संजय को 1999 में ऑस्ट्रेलिया, 1990, 1993 में जापान, 2004 में मलेशिया, 2001 में न्यूजीलैंड, 1999, 2001 में सिंगापुर और 2002 में संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों में ऑर्थाेपीडिक विभाग में विजिटिंग प्रोफेसर और व्याख्यान देने का गौरव प्राप्त है। डॉ. संजय इंडियन ऑर्थाेपीडिक एसोसिएशन के उत्तरांचल स्टेट चेप्टर के संस्थापक अध्यक्ष हैं और कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रोफेशनल संस्थानों के सदस्य तथा फेलो हैं। वह राज्य तथा यू.पी.एस.सी. चयन बोर्डों के सलाहकार एवं विश्वविद्यालय के तकनीकी विशेषज्ञ रहे हैं।

वर्तमान में यह एच.एन.बी. उत्तराखंड मेडिकल एजूकेशन यूनिवर्सिटी, देहरादून के कार्यकारी परिषद् सदस्य हैं। संजय को मानवता के प्रति उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए विभिन्न प्रोफेशनल और सामाजिक संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है जिनमें अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट, संयुक्त राज्य अमेरिका, सिकोट फाउंडेशन फ्रांस अवार्ड, डॉ. दुर्गा प्रसाद लोकप्रिय चिकित्सक पुरस्कार, उत्तराखंड रत्न, उत्तरांचल गौरव इत्यादि शामिल हैं।डॉ संजय ने कई नवीन ऑर्थाेपीडिक सर्जिकल शोध किए हैं जिन्हें ऑर्थाेपीडिक पुस्तकों में उद्धृत किया जा चुका है।

16.5 किलो वजन के सबसे बड़े हड्डी के ट्यूमर को हटाने के लिए उनका नाम 2005 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। 98 वर्षीय उच्च जोखिम वाले रोगी में हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी, ऑटोक्लेव्ड (स्टीम स्टरलाइज्ड) ट्यूमर का पुनः हड्डी प्रत्यारोपण, कैंसर से पीड़ित व्यक्ति के अंग और जीवन को बचाने के लिए और एक 88 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति में रीढ़ की हड्डी का सफल ऑपरेशन करने के लिए डॉ संजय का नाम 2002, 2003, 2004 और 2009 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल है।डॉ. संजय ने अपने 40 साल के प्रोफेशनल करियर में सड़क दुर्घटनाओं के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से देखा है।

सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों के व्यक्तिगत सामाजिक और आर्थिक कष्ट को देखते हुए और एक ऑर्थाेपीडिक सर्जन होने के नाते, उन्होंने भारत में सड़क दुर्घटनाओं के प्रभाव के बारे में पीड़ितों और आम जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने का संकल्प लिया है। उन्होंने नियमित रूप से आकाशवाणी, दूरदर्शन, एफ.एम. रेडियो पर विभिन्न मास मीडिया कार्यक्रमों के द्वारा और एक प्रमुख भारतीय समाचार पत्र में अतिथि स्तंभ लिखकर सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए 2001 से एक जन-जागरूकता अभियान शुरू किया।

उन्होंने और उनकी टीम ने उत्तराखंड और उसके पड़ोसी राज्यों में विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में लगभग 200 से ज्यादा निःशुल्क जन जागरूकता व्याख्यान दिए हैं। उनकी इस समाज सेवा की सराहना, उत्तराखंड के परिवहन मंत्री और यातायात निदेशक उत्तराखंड द्वारा की गई है। वह प्रत्येक शनिवार को बी.पी.एल. कार्ड धारकों को निःशुल्क हड्डी रोग परामर्श देते रहते हैं और रोगियों, उनके रिश्तेदारों और आम जनता को विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए निःशुल्क मासिक हेल्थ पोस्ट वितरित करते रहते हैं।

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