महरौनी(ललितपुर): महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित व्यख्यान माला में “जीवात्मा का स्वरूप,परिमाण और देहप्राप्ति का सिद्धांत” विषय पर आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा ग्वालियर ने श्वेताश्वर उपनिषद मे ऋषि जीवात्मा के स्वरूप और गुणों का बखान करते हुए कहते है गुण, प्रकृति के हैं परंतु जीव उन गुणों का सम्बंध अपने साथ जोड़ लेताहै,जीव फल के लिए कर्म करता है और जैसे कर्म करता हैं उसी का फल भोगता है,जीव सब तरहः के रूप ,देह धारण कर लेता हैं। सत्व- रज-तम इन तीन के प्रभाव से उत्तम,मध्यम,अधम,इन तीन मार्गो में जाने बाला जीव है। यह प्राणों का स्वामी होकर अपने कर्मो के अनुसार विचरण करता हैं।जैसे परमात्मा को उपनिषदों में अंगुष्ठ मात्र कहा है।वैसे जीवात्मा को भी ह्रदय प्रदेश में विद्यमान होने से ऋषि ने अंगुष्ठ मात्र कह दिया है। परंतु मन और बुद्धि से युक्त होने के कारण उसका सूर्य के समान विशाल रूप हैं।”अंगुष्ठ मात्रा” कहने का यह अभिप्राय नही कि वह अंगूठे के बराबर हैं इसलिए फिर कहते है वह “आराग्र मात्र है,सुई की नौक के बराबर हैं अर्थात अत्यन्त सूक्ष्म हैं परंतु फिर भी उस अपर को जीवात्मा को बुद्धि के और आत्मा के गुणों से देखा जाता हैं। अब सुई की नौक के बराबर कहा तो ऐसा भी नहीं,फिर कहा बाल के अगले हिस्से के सौ भाग किये जायें तो उतना भाग जीव का समझना चाहिए।पर इतना सूक्ष्म होते हुए भी जीवात्मा अनंत सामर्थ्य वाला कहा गया है। कठोपनिषद 2/18 में कहा यह चेतन जीव न उतपन्न होता और न मरता हैं यह अनादि काल से हैं।
वेदांशी आर्या ब्रह्मचारिणी गुरुकुल चोटीपुरा ने भजन “हे प्रभु अवगुण मेरे हर लीजिए,जो भी शुभ हो वो कृपा कर दीजिए”
श्रुति सेतिया फरीदाबाद ने भजन” प्रभु मेरे जीवन को कुंदन बना दो,कोई घोट मुझमें रहने न पाए”
अदिति आर्या ने भजन “ओम का सिमरन किया करो,उसके सहारे जिया करो,जो दुनिया का मालिक हैं नाम उसी का लिया करो”
व्याख्यान माला में राजपाल तोमर शिक्षक,अरविंद सिंह यादव प्रवक्ता, ईश्वर देवी,चंद्रकांता आर्या,अनिल नरूला, सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन जुड़ रहे हैं।
संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।