तृष्णा ही दुःख का मूल है – डॉ अखिलेश शर्मा

Shivdev Arya


महरौनी(ललितपुर)  6 मई 2022 :  महर्षि दयानन्द सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वाधान में वैदिक धर्म के सही मर्म को जन जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित व्याख्यान माला के क्रम में “वैराग्य शतक” विषय का विवेचन करते हुए तथा हिरण का उदाहरण देते हुए वैदिक विद्वान प्रवक्ता आचार्य डॉक्टर प्रोफेसर अखिलेश शर्मा जलगाँव महाराष्ट्र ने कहा जैसे जंगल में चरता हुआ हिरण प्यास लगने पानी को ढूंढते हुए रेगिस्तान की ओर चले जाता है। उसे लगता है सामने कुछ ही दूर पर पानी है परंतु जैसी वह पानी के पास जाता है वह पानी कुछ दूर और प्रतीत होता है फिर आगे जाता है फिर पानी दूर चले जाता है यद्यपि पानी वहां रहता नहीं है पर उसे प्रतीत होता है और एक समय ऐसा आ जाता है जब वह चक्कर आकर गिर पड़ता है जैसे ही गिरता है आंखें फेर कर देखता है बस कुछ ही दूर पर पानी था पर मेरी दौड़ कुछ कम रह गई और अंततः प्राण त्याग देता है ।इसी प्रकार मनुष्य भी इससे मेरी तृष्णा पूरी होगी शायद उससे मेरी तृष्णा पूरी होगी ऐसा सोचते हुए सारा जीवन बिता देता है मृत्यु के पास आने पर भी वह सोचता है ऐसा हो जाता तो मैं सुखी हो जाता और अंततः दुःख भोगते हुए अपने प्राणों का त्याग कर देता है। तात्पर्य यह है की तृष्णा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है ।इसीलिए तृष्णा ही दुःख का मूल है । तृष्णा को कम करना समझना और छोड़ना इसी में हम सब की भलाई है।
कभी भरतरी हरी का श्लोक सुनाते हुए आगे कहा कि लोग समझते हैं कि हम भोगों को भोग रहे हैं परंतु वास्तव में वे भोगों को नहीं भोगते हैं भोग ही उनको भोगते हैं। कुछ लोग सोचते हैं हम टाइम को पास कर रहे हैं परंतु कवि कहते हैं टाइम समय ही तुमको पास कर रहा है कि किसी प्रकार कुछ लोग यह सोचते हैं कि मैं कृष्णा हूं को शांत कर दूंगा उनसे तृप्त हो जाऊंगा परंतु ऐसा कभी नहीं होता है प्रेस माय तो शांत नहीं होती है मनुष्य का जीवन मात्र शांत हो जाता है। “तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा:”- इसीलिए योग दर्शन में कहा गया है की देखे हुए विषय सुने हुए विषय अर्थात जो विषय क्लिष्ट मार्ग की ओर ले जाते हैं ऐसे सभी विषयों से वितृष्णा हो जाना उनसे दूर हो जाना हट जाना उसी का नाम वैराग्य है। वैराग्य क्यों प्राप्त करना है? क्यों वैरागी बनना है? क्योंकि हमें दुखों से दूर होना है ,क्योंकि हमें सत्य के पास जाना है, सत्य के पास जाएंगे दुखों से दूर होंगे और हम वैराग्य वान बनेंगे यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।

व्यख्यान माला में विजय सिंह निरंजन एडवोकेट प्रबंधक एमएसडी डिग्री कालेज पाली,कृष्ण कांत दुबे एडवोकेट छायन,आराधना सिंह शिक्षिका, सुमन लता सेन शिक्षिका,सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन जुड़ रहें हैं।

संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।

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